डॉ. ( प्रोफेसर) अनिल प्रसाद
बहुत उत्साहित आ भयभीत। अनजान जगह आ अनजान लोग, नया परिवेश, नया देस, नया भेस आ बोली, एक अलग संस्कृति। बाबा के खुशी, आँख में चमक, चेहरा पर मुस्कराहट – हमरा मन में उहाँ के कहल बात – हथुआ राज के कचहरी के घंटाघर के लेखा बाजत रहे – ‘लागल रहा कहीं ना कहीं होइए जाई!’
हम नवंबर 1991 में पटना छोड़नी आ दिल्ली पहुँच गइनी। एक हफ्ता रहला के बाद जरूरी कागज-पत्तर लेके मुंबई आ उहाँ से टिकट लेके सना’, यमन के राजधानी। नौकरी करे, कालेज में पढ़ावे के नौकरी, अंग्रेजी भाषा आ साहित्य के सहायक प्राध्यापक!
हम 29 नवंबर के भोर में सना’ एयरपोर्ट पर पहुँचनी, साथ में 13-14 लोग के जत्था रहे, सभे शिक्षक, सबका अपना अपना गंतव्य पर जायेके रहे। हमनी के यूनिवर्सिटी गेस्ट हाउस में ले जाइल गइल । हमार प्राचार्य (डीन) फोन कइले कि चार बजे शाम के अइहें, आ हमरा के अपना साथे ले जइहें। ठीक चार बजे शाम के एक हंसमुख आ तेज तर्रार आदमी गेस्ट हाउस के लाबी में दाखिल भइल आ हमार नाम पुछल, अब हमार एक दूसर यात्रा के शुरुआत होखे के रहे !
हम अभी यमन के राजधानी सना’ में रहनी, सना’ जे शायद समुद्र तल से 2,300 मीटर (7,500 फीट ) के ऊँचाई पर बसल दुनिया के अनूठा राजधानी बा । इहाँ से हमरा जहां तक हमार अनुमान रहे दक्खिन के तरफ जायेके रहेl हमनीके यात्रा फेर शुरू भइल, पहाड़ से घीरल शहर, शाम के गुनगुनी धूप के बीच, फिलिप लारकिन के कविता इयाद परल जब हम देखनी की ‘मकानन के शांत लीलार पर शाम के धूप पड़ रहल बा ।‘ एह कविता में उ मन में बसंत के आगमन के बात करsतारें जब आदमी अपना पिछला दुख के सांत्वना के,आवे वाला समय से मिले के उम्मीद हो जाला । हमहूँ आपन पिछला संघर्ष के दिन भुला के नया जीवन में प्रवेश करत रहनी, अइसन लागत रहे ।
पहाड़ी रास्ता, पहाड़ में बसल गाँव, आ चौड़ा सड़क पर लोग आ विदेशी गाड़ियन के अनवरत आना जाना के बीच हमनी के बात करत आगे बढ़त रहनी । प्राचार्य, डॉ अहमद अलवान अल-मदहगी (जे अब इ संसार में नइखन) के आत्मीय बात-चित से नया परिवेश-जनित हमार डर धीरे-धीरे कम होत गइल । अब हमनी के अपना गंतव्य से कुछ दूरी पर रहनी । हमरा लागल जइसे देहरादून से मसूरी जा रहल बानी । सना’ से 154 किलोमीटर (driving distance करीब 198किलोमीटर) दूर इब्ब शहर, हमार गंतव्य, एक खूबसूरत शहर, चारों ओर से पहाड़ी से घीरल, इ जनपद के हरीतिमा देख के एकर उपनाम ‘अलोआल अखदर’ बा जेकरा के अंग्रेजी में ‘The Green Governorate’ कहल जाला । जेतना सुंदर मनमोहक जगह ओतने सुंदर, सहज, सरल आ सभ्य लोग । प्रवासी खातिर मन में बहुत आदर सत्कार के भाव, ओहुमे भारतीय खातिर सबका से ज्यादा !आज एक दशक से ज्यादा समय हो गइल इब्ब से वापस अइले लेकिन अभी भी ओहिजा के लोग, सहकर्मी आ लड़ीका (students) हर मौका पर हमनीके इयाद करेला l
इब्ब शहर पहुँचत पहुँचत साँझ हो गइल। डॉ अल-मदहगी शहर में एगो अपार्टमेंट बिल्डिंग के सामने आपन गाड़ी रोकले आ हमार सामान उतारे में मदद कइले, आ हमरा हाथ में चाभी देके इशारा से बतवले कि नीचे वाला अपार्टमेंट में हमरा रहे के व्यवस्था बा। दूसरा दिन हम कॉलेज गइनी आउर हमार बहुत गर्मजोशी से स्वागत भइल। हम कॉलेज में पहिला भारतीय शिक्षक रहनी। कुछ समय के बाद के बाद आउर भारतीय लोग के नियुक्ति भइल।
कॉलेज में दूसरा देस के लोग भी रहे जेहिमे, सूडानी, मस्री, इराक़ी, टूनिशियन, कूबन, ब्रिटिश आ अमेरिकन लोग भी रहे। यमनी विद्यार्थी के शिक्षक के प्रति आदर भाव आ ओह लोग के अभिप्रेरणा के स्तर देख के अपना इहाँ के पुरनका गुरु-शिष्य परंपरा के इयाद आवे। शिक्षक लोग में आपस में काफी आत्मीय आ सामाजिक संबंध रहे। बाजार में अचानक केहु सामने आके ‘नमस्ते’ कह के अभिवादन कर के मुस्कुरात आगे बढ़ जाई। अच्छा लागी कि घर से एतना दूर एह देस में कुछ अइसन बा जे मन के छु लेता।
जनवरी- फरवरी 1992 में हम अपना परिवार के साथे रहे लगनी। ज्योत्स्ना जी इब्ब शहर में कुछ दिन तक अकेली भारतीय महिला रहली। ओह समय में टीवी चैनल ना रहे। मनोरंजन के साधन में वीसीआर पर भारतीय फिल्म देखल जा सकत रहे। कुछ दूरी पर अमेरीकन अस्पताल रहे जेहिमे कुछ भारतीय नर्स आ डॉक्टर लोग रहे, ओह लोग से परिचय भइल। उ लोग इब्ब से 6 किलोमीटर दूर जिबला में रहत रहे लोग जेकर काफी ऐतिहासिक महत्व बा। एक समय में इ यमन के राजधानी रहे आ इहाँ के रानी रहली रानी अरवा बिंत अहमद अस्सुलेही। आज भी भारत से बोहरा लोग ओहिज जाला लोग।
यमन के प्राचीन समय से ही रोमन लोग Arabia Felix (The Fortunate Arabia/Happy, or Flourishing Arabia) कहे जेकरा के अरबी में ‘यमन अल-साईद’ कहल जाला । खुशहाल, सम्पन्न, धर्मपरायण आ दानिशमंद लोग जहाँ रहल लोग । जहाँ बिलकिस आ अरवा जइसन रानी लोग भइल । जहां जबीद में Classical Arabic के केंद्र रहे, जहाँ के कॉफी (मोचा/मोका कॉफी – अल-मखा के नाम पर ) आज भी विश्व में प्रसिद्ध बा, उ देस में इब्ब शहर आ ओकर अगल बगल में काफी घूमे वाला जगह रहे । हमनी हर सप्ताह के अंत में कहीं ना कहीं घूमें निकाल जाईं । जबल (= पहाड़ी ) अररब्बी, जबल बादान, जबल सबर ( Taiz Governorate में ) वादी (=valley ) बना, वादी अल-जन्नl, अल-मशवरा आदि कइ जगहन पर प्रकृति के बहुत मनोरम दृश्य देखे के मौका मिलल । बादान के हमार साथी शेख अमीन नो’मान ( पिछला बर्ष के स्वर्गवासी हो गइलन) के आदर सत्कार आ स्नेह अभूतपूर्व रहे !
कॉलेज ऑफ एजुकेशन जहाँ हम कार्यरत रहनी आउर जे सना’ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहे 1996-97 में इब्ब विश्वविद्यालय बना दिहल गइल। एकर पहिलका प्रेसीडेंट भइले डॉ नासेर अल-औलकी (पिछला महीना उनकर स्वर्गवासी भइला के दुखद खबर आइल रहे )। डॉ अल-औलकी, यमन के पूर्व कृषि मंत्री, एक सरल, सहज आ सजग व्यक्तित्व के मालिक रहले, सही अर्थ में एक अनुभवी शिक्षाविद। उनका डॉ अब्दुसलाम अल-जऊफी जइसन तेज आ प्रो–ऐक्टिव आदमी ( जे बाद में यमन के स्कूल एजुकेशन के शिक्षा मंत्री भइले ) के सहयोग मिलल आ दूनू आदमी मिल के इब्ब इनिवर्सिटी के बहुत विकास कइल लोग । ओहलोग के टीम में डॉ हसन अब्दु अल-मलिक जइसन उच्च शिक्षा प्राप्त अनुभवी आ डॉ अब्देल शाफी ( अब स्वर्गवासी ) जइसनअनुभवी प्रशासक लोग रहे । एह लोग के साथ हमरा भी एक दशक से ऊपर अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष के रूप में काम करे के अवसर मिलल।
अगर एह लेख में हम यमन के शहर अदन के चर्चा ना करीं त उ उचित ना होई। यमन के खूबसूरत शहर अदन ब्रिटिश कालोनी रहे जेकर के बाम्बे से कंट्रोल कइल जात रहे। जब हमार बाबूजी आ ससुरजी यमन घूमे आइल लोग त एडन जाएके के कहल लोग! ओहलोग स्कूल में अदन के बारे में पढ़ले रहल लोग। बहुत लोग जे E M Forster के A Passage to India पढ़ले होई ओकर जानकारी होई कि ओह उपन्यास के एगो पात्र Mrs. Moore के मौत इंग्लैंड जात में अदन में हो जाता। जे भी भारत से इंग्लैंड जात रहे ओकरा अदन होके ही जाएके रहे। हमनीके अदन गइनी आ उहाँ गाँधी जी से संबंधित सब जगह देखनी आउर हमनी के देखावे वाला रहनी प्रो जयराम सिंह जी जे अभी नई दिल्ली में रहिले । अदन में भारतीय मूल के रहेवाला लोग के जनसंख्या काफी बा । उहाँ हिन्दू देवी देवता के मंदिर भी बा । जहाँ बाबूजी लोग के जाके बहुत खुशी आ संतोष भइल । आज भी अदन में ‘सीधा’, ‘चटनी’, ‘अचांर’, ‘खिछुरी’ ‘धोबी’, ‘जलेबी’, ‘बनिया’, ‘बनियानी’ (अदन में एगो मोहल्ला के नाम ) आदि शब्द ओहिजा के अरबी भाषा के हिस्सा बा !
यमन प्रवास हमरा आ हमरा परिवार के जीवन यात्रा के एक अहम मुकाम बा। यमन से वापस अइला के बाद हम लीबिया आ सऊदी अरबिया में एक दशक तक काम कइनी लेकिन जवन आदर आ स्नेह भारतीय आउर भारतीय संस्कृति से जुड़ल चीजन से यमन में रहे उ कहीं दुसर जगह ना देखे में आइल। वइसे भारतीय शिक्षक के आदर सब जगह बा । आउर मध्य-पूर्व के देशन के अपेक्षा यमन आर्थिक दृष्टि से बहुत समृद्ध नइखे (आज यमन के स्तिथि आउर खराब हो गइल बा ) लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से उ बहुत उत्कृष्ट देस ह। प्राचीन समय से skyscrapers(माटी के बनावल ) यमन के ही शिबाम तरीम में ही बा !अरबी कविता आ संगीत इहाँवा के आम लोग के जबान पर रहेला । यमन के पहाड़ी एलका में सीढ़ीनुमा खेती पर्यटक खातीर अभूतपूर्व दृश्य बा । इहाँके मकान बनावे के तरीका वस्तु-कला के एक अनूठा उदाहरण बा।
स्मृति में बहुत बात बा लेकिन समय आ स्पेस के सीमा बा ! आपन संस्मरण के अंत हम एह बा से करे के चाहब की सरहद त हमनी बाँट लेले बानी लेकिन हवा, बादल, बरखा, बूनि, चिरई-चुरुङ के केहु अभी ले नइखे बाँट सकल। हमनी नौकरी के खोज में (as a part of work diaspora )धरती के कोना-कोना छानमारतानी सन। दूर से दूर गइला पर इ बुझाता कि उहाँ भी आपने लोग बा, उहे अपनापन, उहे स्नेह बा जे दू देस, भाषा, परिवेश आ संस्कृति के आदमी के नजदीक कर देता । जेतना लोग हमरा 17 – 18 बरिस के यमन के प्रवास में हमरा संपर्क में आइल ओह लोग के हम इयाद करीले, उ लोग हमरा स्मृति में इब्ब शहर के हरियाली अइसन हमेशा ताजा रहेला लोग । काहे ना रही ? आखीर ओ जमीन के टूकड़ा पर के सुरुज तs आपने रहले!