ज्योतिष आ जीव के उत्पत्ति   

आलेख

डॉ धनंजय दुबे

 

जीयल-मूअल हाथ में नइखे बाकिर ओकरा के ठीक से समझला प कुछ दुख-दर्द कम हो जाई।   त आईं, जन्म-मृत्यु के संदर्भ में सबसे पहिले ई जानल जाव कि जीव के उत्पत्ति कइसे होला।

संसार में चार प्रकार के जीव के व्याख्या कइल गइल बा-

अंडज, पिंडज, उसमज आ स्थावर।

अंडज उपजत अंड सन, स्वेदज सन स्वेद।

पिंडज उपजे पिंड सन, उद्भिज भू उद्भेद।।

अंडज-

जवना जीव के उत्पत्ति अण्डा से होला ओकरा के अण्डज कहल जाला, जइसे कि सरिसृप, पक्षी, मछली आदि।

स्वेदज/ऊष्मज-

उष्णता से भा गर्मी के अधिकता से जवन जीव उत्पन्न होलें ऊ स्वेदज या ऊष्मज के श्रेणी में आवेलें, जइसे कि झींगुर, खटमल मच्छर, मक्खी आदि।

पिंडज-

जवना जीव के उत्पत्ति वीर्य से होला आ ऊ गर्भ से शरीर के बाहर आवेला, ओह जीव के पिण्डज बोलल जाला, जइसे कि मानव आ पशु।

उद्भिज-

जे भूमि के माध्यम से पैदा होला, जेकर मिटटी से उत्पत्ति होला ऊ उद्भिज श्रेणी में आवेला जइसे कि वृक्ष आ फसल।

महत्वपूर्ण बात ई बा कि सबकर आयु निर्धारित बा।  जे भी ये धरती पर पैदा भइल बा ओकरा समाप्त भी होखे के बा। पृथ्वी पर कुछ अइसन तथ्य बा कि ऊ जीवन भी देबेला आउर जीवन ले भी लेला।

मानव जीवन-

मानव जीवन के बात कइल जाय त मानव जीवन में आत्मा के अत्यंत महत्वपूर्ण मानल जाला, जवन कि शरीर में निवास करेला।  आत्मा कबो जन्म ना लेव, सिर्फ शरीर के जन्म होला।  आत्मा के सन्दर्भ में कहल बा कि एक आत्मा पाँच सौ  से एक हजार वर्ष तक के आयु तक शरीर भोगे आवेला लेकिन शरीर के विडंबना बा कि शरीर ये भौतिक जगत में होखे के कारण बहुत जल्दी क्षय हो जाला जैसे 80 या 100 वर्ष के आयु तक शरीर ख़त्म हो जाला।  फेर आत्मा के दोसर शरीर धारण करे के पड़ेल।

किसिम-किसिम के अवधारणा-

महर्षि विश्वामित्र द्वारा मृत्यु जीवन रहस्य में व्याख्यान कइल बा कि आत्मा कभी भी गर्भ में प्रवेश ना करे,  गर्भ से जवन स्थूल शरीर उत्पन्न होला ओकरा गर्भ से बाहर आवते ओह में आत्मा प्रवेश करेले जवना के वजह से नवजात में देह में प्रतिक्रिया आरम्भ हो जाला, लेकिन शरीर के जब से गर्भ में संस्कार हो जाला तब से आत्मा भी उहवें आसेपास रहेला आ वोह  वातावरण के संस्कार धारण करेला।

ऋषि अगस्त के द्वारा भी शरीर के आउर आत्मा के बारे में कुछ व्याख्यान बा जइसे कि जीवन में जवन भी आनंद के पल होला या अत्यंत दुःख के पल होला ऊ सिर्फ आत्मा कष्ट उठावेला, वोह कष्ट के सिर्फ आत्मा भोगेला,  आत्मिक या मानसिक कष्ट होला, लेकिन जब शारीरिक कष्ट या घाव पहुंचेला त आत्मा बहुत कम समय खातिर प्रतिक्रिया देला।  जवना व्यक्ति के ई मालूम हो जाला कि ओकर मृत्यु होखे वाला बा ऊ व्यक्ति आत्मिक तौर पर कष्ट में रहेला।

ज्योतिष गणना के आधार पर कलयुग में व्यक्ति के आयु कम से कम 108 वर्ष मानल बा ओह के ऊपर प्रारब्ध आ इक्क्षा शक्ति बा कि शरीर के कइसे संतुलित कइल जाला।

ज्योतिष वेद के अंग ह। वेद के छह अंग मानल जाला-

1 . शिक्षा,  2-कल्प, 3-निरुक्त,  4-व्याकरण,  5-छंद,  6-ज्योतिष।

वेद के इ छह गो अंग बा जवना में ज्योतिष के कार्य भूत, भविष्य आ वर्तमान के गणना बा, दिशा निर्धारण बा।

ज्योतिष ही कुंडली के गणना करके इ बता देला कि व्यक्ति भविष्य में कौन उम्र में बीमार पड़ी आ ओकर बीमारी साध्य बा कि असाध्य। चिकित्सा विज्ञान में अभी ई संभव नइखे, चिकित्सा विज्ञान सिर्फ बीमारी के इलाज कर सकेला लेकिन भविष्य में का बीमारी होई, ई बखान नइखे कर सकत।

आत्मा के निवास

मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ चल जाला?

चूंकि आत्मा के कवनो स्वरुप ना होखे त ऊ अति सूक्षम रूप में ऑक्सीजन मोलीकूल्स के रूप में वोही परिवार के आस पास स्थान पर रहेला अउर जेतना ओकर अवधी शेष रह जाला ओकरा खारित इंतज़ार में रहेला।

गीता उपनिषद

गीता के बारे में सर्वविदित बा कि आत्मा परमात्मा आ मनुष्य तन के बारे में आउर प्रारब्ध के बारे में भगवान् श्री कृष्णा द्वारा चर्चा कइल बा। मतलब आत्मा के का रहस्य बा, काहे जन्म लेबे के पड़ेला, काहे कष्ट होला, का पाप ह, का पुण्य ह आ काहे मृत्यु होला, इ सब गीता में व्याख्यान कइल बा।

उपनिषद में प्राण का ह मतलब आत्मा के आदेश के देबेला,  आत्मा कइसे निर्धारित करेला कि ऊ कवन शरीर धारण करी .. अउर भी बहुत सारा रहस्य बा।

मृत्यु आ जीवन के सम्बन्ध

मृत्यु के क्षण भर बाद जीवन के आरम्भ हो जाला,  जन्म लेते ही मृत्यु के प्रक्रिया आरम्भ होला,  जीवन के हर क्षण  माने प्रत्येक क्षण जवन बीत रहल बा ऊ मृत्यु में समां रहल बा।

मृत्यु के अंग

1 सबसे पहिले शारीरिक क्रिया के मृत्यु होला।  जइसे-जइसे जीवन में आगे बढ़ेला आदमी ऊ अपना जीवन के प्रत्येक पल मृत्यु के देत जाला।

2 फेर ओकर इक्ष्छा के मृत्यु होला माने जीवन में धीरे-धीरे इक्छा ख़त्म भइल जाला।

3- अंत में शरीर के मृत्यु होला।  शरीर छोड़े खातिर भी बहुत संघर्ष करे के पड़ेला। आसानी से शरीर के साथ ना छूटेला।

कहे के मतलब कि सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के गर्भ में बा,  मृत्यु चाहे त अल्पकालीन बना दी चाहे ता दीर्घकालीन।

मृत्यु जीवन के दाता  

मृत्यु के देवता भगवान् शिव के मानल बा काहे कि जेकरा देबे के अधिकार रहेला ओकरे लेबे के अधिकार होला। भगवान् शिव के महाकाल कहल जाला।  भगवान् शिव के अधीन मृत्यु आ मृत्यु के अधीन जीवन इहे जीवन मृत्यु के रहस्य बा।

 

डॉ धनंजय दुबे

(ज्योतिषाचार्य , गोल्ड मेडलिस्ट )