संपादकीय
अजय कुमार पाण्डेय
जिंदगी के सार्थकता के प्रति हर सवाल के जबाब बा मनोज जी के संपादकीय
भोजपुरी आ भोजपुरी के विकाश आ लोकप्रियता ला आज बहुत सा लोग आ संस्था दिन-रात लागल बा। एमें बड़ा महत्वपूर्ण आ श्लाघ्य भूमिका बा, ” भोजपुरी जंक्शन ” के। देश भर के भोजपुरी विद्वान लोगन के लिखल सामग्रीअन के इंद्रधनुष ह ” भोजपुरी जंक्शन “।
श्री मनोज भावुक जी के संपादन में ई पत्रिका केवल देश में हीं ना दुनिया भर में जहां भी भोजपुरिया समाज बा, उहां ले आपन पहुँच बनवले बा। ” भोजपुरी जंक्शन ” के विशेषांकन के कड़ी त भोजपुरी के संदर्भ ग्रंथ जइसन बा आ जेतना उत्कृष्ट सामग्री से भरल बा, निश्चय हीं संग्रहणीय बा।
” भोजपुरी जंक्शन ” के संपादकीय, प्रत्येक अंक आ विशेषांक के आत्मा जइसन लागेला। संपादक श्री मनोज भावुक जी साफा करेजा निकाल के रख देवेनी, संपादकीय में। एक-एक शब्द सीधा दिल में उतरत चल जाला। आज हम कुछ अइसन संपादकीय के चर्चा करब, जवना में जीवन दर्शन बा –
” गोदी से लेके डोली, डोली से लेके अर्थी “
शीर्षक से हीं बुझा गइल होई, केतना संवेदनशील विषय बा ई संपादकीय के।
संपादकीय शुरू भइल बा ,
” हँ, त अलबत्त लीला बा नारायण के ! हँसत-खेलत, बोलत-बतियावत आदमी कब गते से ठंडा पड़ जाता, निष्प्राण हो जाता, बुझाते नइखे ! “
जिनगी के केतना करीब से ई सम्पादकीय देखा देता कि आपन जिनगी बेकार लागे लागता। जिनगी के सार्थकता खोजे लागता मन।
एही में आगे बा,
” बहुत बा लोग जे मरलो के बाद जीयत बा
बहुत बा लोग जे जियते में यार मर जाला।
मनोज जी लिखताडे,
” अब मरलो के बाद के जीही ? ……जे मरलो के बाद कामे आवत रही। राम जीयत बाड़ें, बुद्ध जीयत बाड़ें, कबीर जीयत बाड़ें, गांधी जीयत बाड़ें।”
ई संपादकीय ” जन्म-मृत्यु विशेषांक ” के संपादकीय के बानगी भर ह। पूरा संपादकीय जब पढेब सभन, पता लागी, ई संपादकीय ना ह शुद्ध जीवन दर्शन ह।
” जिंदगी जंग ह, बोझ ना …..”
जिनगी आ मौत के बेहद करीबी रिश्ता के बड़ा बारीक चित्रण कइले बानी मनोज जी। मनोज जी के एगो शेर उद्धृत बा इहाँ,
” दुखो में ढूंढ ल ना राह भावुक सुख से जिये के ,
दरद जब राग बन जाला त जिनगी गीत लागेला ”
” खुद के लवना के तरह रोज जरावत बानी ……”
” पेट में आग त सुनुगल बा रहत ए भावुक,
खुद के लवना तरह रोज जरावत बानी “
कोरोना के त्रासदी पर केंद्रित ई संपादकीय बहुत कुछ सोचे पर मजबूर क देता।
संपादक जी लिखतानी ,
” आदमी के जिनगी चूल्हा हो गइल बा आ देह लवना। ओही में जरsता-धनकता आदमी। एह लपट से मानवता के बचावे खातिर जल्दिये कुछ उपाय कइल जरूरी बा। “
ई संपादकीय सब कुछ कह देता आ कोरोना के त्रासदी सचमुच केतना भयावह रहे ओकर साफ तस्वीर खींच देता।
वाकई संपादकीय कौनो पत्रिका भा विशेषांक के आईना होला, आत्मा होला। सम्पूर्ण अंक के प्राण संपादकीय में बसेला आ ई प्राण डालल हँसी-खेल ना ह, बड़ा गहराई तक उतरके पड़ेला। संपादक श्री मनोज भावुक जी के संपादकीय एकर सबसे बढ़िया आ उत्कृष्ट उदाहरण बा।
हम प्रायः सब सम्पादकीय पूरा समय दे के आ इत्मीनान से पढिला।
आ बिना इत्मीनान से पढला कुछ बुझाई भी ना। मनोज जी के लेखन आ विशेषकर संपादकीय लेखन, दर्शन के स्तर तक पहुँच गइल बा। एकरा के आत्मसात कइल जरूरी बा।
ऊपर जे कुछ संपादकीय के चर्चा हम कइली ह, ई जरूर पढेब स आ कुछ और भी सम्पादकीय विशेष तौर पर पढनीय बा, जइसे-
” लेखक ऊ जे दिल में छप जाय ” ,
” मन के रिचार्ज करीं ” ,
” युद्ध ना बुद्ध के दरकार बा ” ,
” जिनगी संभावना ह, समस्या ना ” ,
” जिंदगी युद्ध ना उत्सव ह ” ,
ई सब संपादकीय पढ़ के वास्तव में जिये के मन करेला आ एगो सिनेमा के गीत याद आवेला,
” आज फिर जीने की तमन्ना है “,
जब भी मन में जिंदगी के प्रति, जिंदगी के सार्थकता के प्रति सवाल उठे ला, मनोज जी के लिखल संपादकीय समाधान प्रस्तुत क देला।
जिंदगी के सकारात्मक पहलू हमेशा ईयाद दिलावे ला ” भोजपुरी जंक्शन ” के संपादकीय आ मन में ई विश्वास मजबूत हो जाला कि,
” जिंदगी संभावना ह, समस्या ना “, अउरी ” जिंदगी युद्ध ना उत्सव ह “।