किताब के नामः कचोट
लेखक के नामः महेन्द्र प्रसाद सिंह
किताब के विधाः भोजपुरी हास्य व्यंग्य नाटक
प्रकाशक के नामः रंगश्री प्रकाशकन
प्रकाशन वर्ष : 2001
पृष्ठ संख्या : 62
किताब के संशोधित मूल्यः 100 रु.
भोजपुरी के शिष्ट साहित्यिक आ प्रतीकवादी नाटकन के परम्परा में सर्वोच्च स्थान रखेवाला भोजपुरी हास्य व्यंग्य नाटक “कचोट” जेकर लेखक बानी भोजपुरी के सुविख्यात नाटककार, रंगकर्मी, निर्देशक तीनों विधा में समान रूप से पारंगत श्री महेन्द्र प्रसाद सिंह। एह नाटक में भरतपुर गाँव के एगो आदर्शवादी स्वतंत्रता सेनानी रामचनर के कहानी बा। आजादी के बाद चुनावी तिकड़म, राजनीति के अपराधीकरण, चतुर्दिक भ्रष्टाचार आ जीवन मूल्यन के उत्तरोत्तर अकल्पनीय ह्नास के दुष्परिणाम से ओह स्वतंत्रता सेनानी के मोहभंग आ आक्रोश एह नाटक के कथावस्तु बा। रामचनर के करेजा के कचोट नाटककार के एह पक्तियन से स्पष्ट हो जाता।
‘‘गहीड़ घाव करे वाला कवनो बरियार चोट खइला के बाद जब आदिमि कुछुओ करे से अलचार हो जाला त ओकर करेजा कचोट के रह जाला। आज अनेत, भ्रष्टाचार आ आतंक के मार से आदिमि अतिना घवाहिल आ बेकस हो गइल बाड़न कि कुछुओ करे के बउसाव नइखन बटोर सकत। कुल्हि लंठ, खूनी आ भठियारा साँढ अस, सभे के रउन्दत, माकल चलत बाड़न आ उन्हुका छतरछाँह में पनपत-पोसात चोर, बैमान आ लूटेरा सउँसे सामाज के मूस अस चाल के खोंखड़ कर देलन। एकर करण बा इन्हिके लोगिन प टिकल देस के गइल बहाइल राजनीति जे आदर्श ना रह के बेसाह हो गइल बा।
आज गद्दी हथियावे के चुनावी दंगल में जे अनेत होता ओकर कवनो लेखा नइखे। तरह-तरह के लालच देके भाई-भाई में भेद पैदा कइल जाता। जाति-पाँति, टंटा-बखेड़ा, खून-खराबा आउरी ऊ कुल्हि करम होता जे ना होखे के चाहीं।
हमरा एह नाटक में कइगो पात्रन के भूमिका निभावे के सौभाग्य प्राप्त भइल बा जइसे सकलू, समानन, चिरकुट आ रूपन। एह नाटक में रामचरन के माध्यम से देखावल बा कि देश के कानून व्यवस्था उनकरे लेखा लंगड़ा आ असहाय हो गइल बा आ धरीछन जइसन सत्ताधारी के गुलाम हो गइल बा। नाटक के एगो संवाद, अब भगवान में पावर कहाँ बा। अब त ना भगवान में पावर, ना भगत में पावर, ना तहरा में पावर ना हमरा में पावर, ना गाँव में पावर ना सहर में पावर…. सगरे पावर के कराइसिस बा। सभ पावर त धरीछन बबुइया अपना हाथ में ले लेले बा।
भागमानो के एगो संवाद बा, “बिपतिया लगवना मूस सउँसे घर चाल के रख देले बाड़न स। कहिला कि मुसमरनिया ले आवऽ लोगिन, त हमार के सुनेला। देखऽ त भरल बोरा के चाउर रहे सभ काट के खा गइलन स। ई मूस जीअल दूलम कइले बाड़न।” इ संवाद में मूसो एगो प्रतीक बा जवन भ्रष्ट व्यवस्था के चोर, बैमान, भ्रष्ट अधिकारी, कर्मचारी के रूप में सउँसे समाज के चाल रहल बा आ जवना से एगो आम आदमी त्रस्त बा बाकि ओकरा के मार नइखे सकत। एह नाटक में बकरियो प्रतीक के रूप में लिहल बा जवन कि खेत के मेढ़ पर चरत पकड़ के काट दिहल जातिआ आ ओहिजे साँढ़ बिगहा के बिगहा खेत चर जाता बाकिर ओकरा के कानी हउद में केहू ना डलवा सके। ओहिसही देश के आम आदमी के जीवन बकरी जइसन हो गइल बा। जेकरा के केहू सता सकेला। बाकिर नेता बनके बड़का-बड़का घोटाला कइला के बादो ओकर केहू कुछ ना बिगाड़ सके।
जवन रामचनर आजादी के लड़ाई में अंगे्रजन से लड़के आपन एगो गोड़ गँवा बइठल ओकरे छोट भाई रूपन पियक्कड़ हो गइल आ “जेकर राज ओकर माला जप” इहे ओकर सिद्धान्त बा। ओकरा हिसाब से गुंडातंत्र आ गद्दी के सोझा बहनोई आ दामादो के बली दिहल जा सकता। ऊ परिवारिक व्यभिचार के सूत्रधार त बड़ले बा आ चापलूसन के प्रतीक बा जे निरंकुश आ भ्रष्ट व्यवस्था के चापलूसी कर के पुड़ी आ कचैड़ी के गलचभ्भा उड़ावत बा। रूपन त रूपन रामचनर के आपन बेटा सामाननो गुमराह हो जाता आ मुखिया के चुनाव में वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा त बा बाकिर एह आशा में कि जदि बढ़ियाँ धन मिल गइल त बइठियो जाइब। सामानन आ ओकर संघतिया सकलू समकालीन लक्ष्यहीन, भ्रष्ट आ मूल्यहीन युवावर्ग के प्रतीक बाड़न जेकर आदर्श खाली रूपिया कमाइल बा चाहें उ जइसे आवे।
जहवाँ सत्ताधारी धरीछन अपना गुण्डातंत्र के संगे खाली अनैतिक कामे के आपन धर्म मानता। ओहिजे रामचनर के सच्चा उत्तराधिकारी ढ़ोढ़ा जइसन संत, ईमानदार आ जुझारू आदमी के झूठे आरोप में जेहल भेज दिहल जाता। नाटक में चुनावी दंगल में बाहुबल आ धनबल के वर्चस्व, नशाखोरी, स्वार्थपरता आ चाटुकारिता आम आदमी आ चिरकुट जइसन गरीबन के दमन आ शोषण, अनीति आ पाप के नंगानाच के एतना कलात्मक आ प्रभावी रूप से चित्रण कइल बा जवना से साबित होता कि लेखक के नाटक आ भाषा के हरेक रूप पर पूरा आधिपत्य बा। एह नाटक के संवाद प्रसंगानुकूल, पात्रानुकूल, संक्षिप्त, सुबोध आ प्रवाहमय बा कि पाठक भा दर्शक एकरा से अइसन मंत्रमुग्ध हो जाले कि कब शुरू भइल आ खतम बुझइबे ना करे। एह नाटक में जवन ठेठ भोजपुरी शब्दन के प्रयोग भइल बा उ अपना आप में बेजोड़ बा। जइसे, खराई मारल, भाॅड़ी में बन कके राखल, मुहें माटी लगावल, जोम जागल, चोला कउआ भइल, टंट बेसाहल, करेजा ठंढावल, चोला कुफुत में पड़ल आदि।
परिचय: अखिलेश कुमार पाण्डेय एगो वरिष्ठ रंगकर्मी और रंग निर्देशक बाड़न। पिछला 16 वर्ष से रंगमंच का अलावे अभिनेता के तौर पर कई गो टीवी सीरियल का संगे-संगे, फिल्मों कइले बाड़न। विभोर, (विश्व भोजपुरी रंगमंच) पत्रिका के प्रबंध सम्पादक बाड़न।