पुस्तक-समीक्षा
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
पुस्तक – बनचरी
विधा- उपन्यास
उपन्यासकार- डॉ अशोक द्विवेदी
प्रकाशन वर्ष -2015
मूल्य- 220/- / 300/- (अजिल्द/सजिल्द)
प्रकाशन- बिग सी मीडिया पब्लिकेसन, नई दिल्ली
आपन भाषा, आपन बोली भोजपुरी के संगे-संगे, अपना माती के सोन्हपने से भरल-पूरल कवि डॉ अशोक द्विवेदी के लेखनी से सिरजित भइल ‘बनचरी’ एगो अइसन कथा विन्यास ह, जवन पढ़निहार के अपना कथारस अउर रंग में सउन के पात्रन के संगे लिया के ठाढ़ क देवेला। एह उपन्यास के लिखनिहार के दीठि एह कृति के नाँवे से बुझाये लागत बा। जवन लेखक के भाषा शिल्प, गियान अउर लेखन के सुघरई से पढ़निहार लोग से सोझे मिलवा रहल बा। लालित्य से भरल सरल भाषा, जगह-जगह उकेरल गइल बिम्ब मन के मोहे क समरथ रखले बा। पहिलका पन्ना पढ़ते पढ़निहार ओहमें एह तरे डूबेला कि सगरी किताब पढ़ला के बादे ओह कहनी के दुनिया से बहरा आ पावेला। पढ़त के बेरा पढ़वइया के मन में उपजल अउर जाने-बूझे के इच्छा अइसे जामेले जवन ओरात-ओरात अउर बढि जाले।एह उपन्यास के कथा बेर बेर पढ़निहार के आँखिन के लोराये खातिर मजबूर क देवेले।
बनचरी उपन्यास महाभारत कथा के नकारल गइल मेहरारू हिडिमा के महराज वृकोदर (भीम) से निःछल परेम से भरल-पूरल,समझ-बूझ, करतबी अउर लोक के मंगल करे वाली परेम के पवित्तर कहनी ह। महाभारत में हिडिमा के चरित्तर के एह दिसाई देखलों नइखे गइल बाकि इहवाँ उपन्यासकार के दीठि नीमन तरे गइल बा। इहवाँ के इतर कतों हिडिमा के मनई के दीठि से देखलो नइखे गइल आ ना त ओकर चरित्तर के उकेरले गइल बा। बाक़िर डॉ अशोक द्विवेदी अपना लेखनी से हिडिमा के चरित्तर के एह दिसाई देखले बानी। अगर थोरही में हिडिमा के चरित्तर के देखल जाव त –
“यौवना, अल्हड बनचरी, निश्छल प्रेयसी ,पतिव्रता नारी, ममता से भरल महतारी , समरथ जिनगी के दर्शन से बन प्रदेश का कायाकल्प करे वाली प्रशासिका देखात बाटे।”
अइसन कवनो रचना के कथानक गढ़ल बहुते कठिन होखेला बाक़िर डॉ अशोक द्विवेदी एगो मझल रचनाकार बानी। दू गो अलगा-अलगा संस्कृतियन के मिलावल आ ओकरा के एक बनावे के बातिन के जतना सुघरई के संगे राखल बा, उ लिखनिहार के कल्पना के बरियार उदाहरन बन गइल बा। हिडिमा का रूप में एगो बन में रहे वाली चंचल, सुघर अउर अल्हड़ लइकी के परेम के भीम खातिर देखि के अचके पढ़निहारो लोग का मन में इरखा जामे लागता। हिडिमा अउर भीम के परेम के अइसे परोसल गइल बा जवना से केहुओ के रोंआ भरभरा जाता। हिडिमा के अइसे प्रस्तुत कइल गइल बा कि जवना के पढ़ला का बाद केहुओ के मन में ओइसने लइकी ला इच्छा जागे लागता।
हिडिमा के जिनगी लोक के कल्यान के कलपना अउर ओकरा जमीन पर उतारे के इच्छा से भरल बाटे। हिडिमा एगो कामकाजी मेहरारू अउर परजा के पाले वाली लोकप्रिय रानी का रूप में परजा के आदर के पात्र बिया। जिनगी के अलग-अलग बेरा में जइसे सुघरई, महतारी आ करतब के समुझ के एगो धागा में अइसे गूथल गइल बा जवन हिडिमा के अमरता दे जात बाटे। इहे उ कारन बा जवना का चलते हिडिमा के इजत के लोक सरधा के दीठि देखे लागत बा। एकर जियत-जागत उदाहरन हिमाचल के मनाली में हिडिंबा मंदिर अजुवो बा। एह तरे से देखला पर त इहे लागता कि उपन्यासकार बनचरी अउर ओकरे समाज के जिनगी के तुलना मानवीयता के संगे सभ्य समाज से करत देखात बा।
दबल-कुचलल अउर पिछुयाइल जातियन के खातिर पक्षधरते सगरों सुना रहल बा। भीम का संगे हिडिमा के बियाह से बन में आपुसी सहजोग अउर अपनइत के जवन माहौल बनता, उ तुलना से परे बा। भीम के अनेक गुनन के अलगा उपन्यासकार बनवासी हिडिमा से ई कहवाइए लिहने-
“हम कुछहु करीं , बाकि महाराज नीयर ना हो सकीं , बाकिर मरते दम तक प्रयास जरुर करब“
हिडिमा के संगे आचार्य चांडक, मंत्री उतुंग, कुन्दू, नीरिमा आदि अनेक पात्रन से महराज वृकोदर के चरित्तर के फइलाव मिलल बाटे। ‘बनचरी’ में मेहरारू के धरम आ महतारी के धरम के नीमन संजोजन भइल बा। हिडिमा जब माई कुंती के अपने लइकन के अपना हाथ से खियावत देखत बिया, त कुछ वइसने करे क भाव ओकरो मन में उपरिया आवता। जब पहिला बेर हिडिमा के एकांत मिलता आ भीम के खइका खियावे के अवसर भेंटाता, त उ भीम से निहोरा करत क़हत बिया-
“एक बेर हमरा हाथे खालीं , तबे हमहूँ खाइब”
एही के बहाने से उपन्यासकार मेहरारू के भीतरि के महतारी रूप के दरसन करा रहल बा। घटोत्कच के खातिर हिडिमा माई, बाबू आ गुरु तीनों बा, एकरा के घटोत्कच नीमन से बूझ रहल बाड़ें। बन छेत्र, पहाड़ियन के जियतार बरनन से अइसन लागता कि उपन्यासकार अपना बौद्धिक गियान, अनुभव आ कलपना के तिरबेनी बहवा के ओकरा के सुघर बना देले बाड़न, जवन नगदे बूझा रहल बा। पढ़े जोग किताबि के कसौटी पर ‘बनचरी’ खर सोना लेखा बा। बन, पहाड़ आ ओकरा सुघरई के बहुते नीमन ढंग से उकेरल गइल बा, जवन केहुओ के बान्हे के समरथ राखत बा।
डॉ अशोक द्विवेदी के लेखनी से उपेक्षित हिडिमा के चरित्र के निखारे आ ओके मजबूती देवे के संगे,सधल संवाद, पात्रन के रेखाचित्र अउर घटनवन के एक -दोसरा से नीमन से जोड़ल गइल बा। कसल भाषा, सुघर शिल्प, जरूरत का हिसाब से कथा के बिस्तार भइल बा, जवन सराहे जोग बा। ‘बनचरी’ सरल भाषा, पढ़े जोग अउर विशिष्ट भाषा शैली में तरासल अइसन कृति बा जवना से भोजपुरी साहित्य के एगो अमूल्य धरोहर भेंटा गइल बा। हमारा विसवासों बा कि एह कृति हमेसा ईयाद राखल जाई।
परिचय- ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ के सम्पादक जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के 4 गो भोजपुरी के किताब प्रकाशित हो चुकल बा अउर 4-5 गो किताबन के संपादनों कइले बानी।