पुस्तक-समीक्षा
निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव
पुस्तक : पनिहारिन (भोजपुरी काव्य संग्रह)
लेखक : अनिरूद्ध
विधा : काव्य
प्रकाशक : सरोज प्रकाशन, 5, टैगोर हिल्स रोड, राँची
प्रकाशन वर्ष : 1989
पृष्ठ संख्या : 96
मूल्य : 25 रुपया
‘पनिहारिन’, भोजपुरी कविता-संसार में भोजपुरी के पन्त आ वर्ड्सवर्थ का नाम से विख्यात भोजपुरी के यशस्वी कवि-गीतकार आ शब्द-पुरुष अनिरुद्ध के पहिला काव्य-संग्रह ह. ई काव्य-संग्रह छव् खंड में बंटल बा-‘गीत भोर के’, ‘गीत साँझ के’, ‘गीत रितु के’, ‘गीत देस के’, गीत खेत-खरिहान के’ आ ‘विविध गीत’. एह काव्य-संग्रह में अनिरुद्ध के 1949 से 1988 का बीच लिखल कुल 77 रचना संकलित बा।
एह काव्य-संग्रह के पहिलका खंड ‘गीत भोर के’ में भोर पर 13 गो गीत-कविता बा जवना में गंवई अंचल के बिहान-भोर-भिनसार, विशेष रूप से आसिन, सरद, आ अगहन का भोर का प्राकृतिक छटा आ सौन्दर्य के अद्भुत मनोहारी चित्रंण बा. एह खंड के दू गो गीत विशेष रूप से उल्लेख करे लायक बा- “गाँव के भोर’ आ ‘पनिहारिन’। ‘गाँव के भोर’ में रात का घूंघट के उठावे वाला नीला रंग के आसमान के मिलन-पर्व के आनन्द गांव का भोर में कइसन छलक रहल बा ओकर वर्णन एह पँक्तियन में अद्भुत बिम्ब-विधान का जरिए भइल बा-रतिया के घुंघटा उघारे असमनवा, हँसेला मिलनवा में प्यार/लाले रंग पगिया के रंगेली लहरिया, नील रंग चुंदरी के कोर/धरवा किनरवा जे रंगे सातो रँगवा, उतरल पंखिया पै भोर/डोलिया कँहारवा जे रखे पनिघटवा, खोली झाँके खिड़की केंवार.“पगड़ी आ चुंदरी के बिम्ब पुरुष आ प्रकृति के मिलन के सुंदर शास्ति रच रहल बा।
‘पनिहारिन’ अनिरुद्ध के सबसे प्रिय कविता रहल बा. एही कविता पर संग्रह के नाम भी बा. भोर में घइला में पानी भरके पुरवा हवा में अंचरा लहरात पनिहारिन के गोल लौटेला. एह दृश्य के कविता के तीसरकी आंख कइसे देखता- “दिल दरियाव घड़ा में जीवन, घट में बहता पानी/घइला में नदिया के भर के उमड़ल भरल जवानी/अंचरा के सब पाल उड़वले, भुइँए नाव चलेला/’. एह पंक्तियन में दू गो दृश्य के समीकरण बा आ ओकरा बाद धरती पर नाव चलला के असम्भव कल्पना में अपूर्व उन्मेष बा जे कवि के गजब के सृजनशीलता के संकेत दे रहल बा।
‘गीत साँझ के’ खंड में साँझ पर 8 गो गीत-कविता बा. एह खंड के ‘सँझिया साँवर गोरी’ कविता विशेस रूप से उलेख करे लायक बा. सांझ का बेरा पल-पल बदलत प्रकृति के रूप के सुंदर आ मनोहर वर्णन बा। एह कविता में सूरज के मछुआ से तुलना भइल बा ‘”ताल-ताल नदिया दिन भर फेंके जाल सूरुज/ खींचे गुटीआवे अब लाल-लाल डोरी”. “एक बेर फेरु जिनगी गाँव चहक रंग जाला/ बगिया पंखिया पसार प्राण अब लौट आइल.” “बीन पछिम बाजेला समय का सपेरा के” आ “रावन गदबेर सांझ सुसुकत रथ ले भागे” में समय के तुलना सपेरा से आ रावण के तुलना गदबेर से में उहे उन्मेष दिखाई देता.
‘गीत रितु’ के खंड में अलग–अलग रितु अलग-अलग संवेदना, अलग-अलग रंग आ प्रकृति के अलग रूप के गीत-कविता बा. एह गीतन में कवि निरीक्षण शक्ति सराहे लायक बा. कुछ पंक्ति देखीं-लाल पगड़िया ला चुनरिया रंगे नगरिया लाल रे/बगिया में चैता रस मातल रंगे नजरिया लाल रे/’ (फागुन के गीत), “ले पहुंचल संदेश कोइलिया आइल रे मधुमास/ कँटइया के पीयर प्याली मातल नयन पलास/चइत राज का अगुआनी में कनइल बिगुल बजावे/” (मधुमास), “अँखियाँ में महंक रहल सनेह चइता के/गान-गाँव में रंगल बथान बा/मउसम हरदम नया जवान बा/’’ (मउसम हरदम नया जवान बा). ‘उमर घुमड़ बरसे आषाढ़ के कजरा नैन बदरिया बरसे” (आषाढ़ के बादल), “धनके जिनिगिया बगिया, हरी फुलवरिया/जीभवा निकाले हांफे नदिया-पोखरिया/तडपे परानी भुंइया सागर मांगे पानी/ बदरा बरसS हो/” (मेघ गीत), ‘रूप महकेला महके उमिरिया/ झुनुर-झुनुर नाचेली भोर/’ (शरद गीत), हरियर सेज बिछल फिसलल मन, मोटी जदल रंगीला/मखमल पर रंगीन रेशमी तितली कढ़ल कसीदा/ई मउसम रंगरेज रूप के सुंदर सजल बजरिया (हेमंत गीत), सरसों फूल बसंती पगिया मीत चुनरिया रंग दे रे/नैन गुलाबी चटक प्रेम रंग मीत नजरिया रंग दे रे/ धरती धनी फसिल पके जब रंगे कनक रंग काया/कांटा फूल कुसुम रंग चोला ई माटी के माया/उड़े बिहग बिसरे न भुंइया नेह अंचरिया रंग दे रे/ (मीत नजरिया रंग दे रे).
‘गीत देस के’ खंड में पांच गो देस गीत आ ईगो बढ़ावा गीत बा आ एकरा अलावा ईगो गीत नदी का महिमा पर बा. “दुनिया में देस हमार मुंदरी के हीरा बा” (देस गीत), “कस्मीर धवल मुखड़ा, हिय हार सजल नदिया/ नभ झील जड़े नीलम दरपन हमार भारत/ ई प्राण से पियारा मधुबन हमार भारत’ (ह्मार भारत) में कवि के राष्टवाद के भावना झलक रहल बा. भोजपुरी भाषा में लिखल अनिरुद्ध के बढ़ावा गीत के तुलना इनल-गिनल प्रयाण-गीतन से कइल जा सकता- “आज महाधार में देस के पुकार बा/कर्म के गोहार बा/.सामने पहाड़ बा/तू जवान चढ़ चल/ झूम-झूम चढ़ चलs/बान बन कमान पर सनसनात चल चलs.
अनिरुद्ध श्रम का सौन्दर्य के भी चित्र प्रस्तुत किइले बाड़न. ‘गीत खेत खरिहान के’ आ विविध गीतन के ‘गाड़ीवान गीत’ से मालूम होता-“गाय भंइसिया भेड़ बकरिया धन दउलत चरवाहा के/फसल-फसल पर चमक पसीना फल मोटी हरवाहा के”.
‘पनिहारिन’ के तुलना पन्त के कविता संग्रह ‘ग्राम्या’ कइल जा सकता. दुनों में ग्राम-चित्र के बहुलता बा. अनिरुद्ध के कवितन में प्रकृति के उद्दीपन, आलंबन आ अलंकार तीनों रूप उपस्थित बा. सदानीरा नारायणी नदी का किनार पर बसल उनकर गाँव आ ओकर प्रकृति उनका भीतर बा उहे उनकर अनुभूत आ बिम्बन के स्रोत बा. ‘पनिहारिन’ के गीतन आ कवितन में चाक्षुष, श्रव्य, गंध्य, स्पर्श्य, गत्यात्मक, पौराणिक सभे तरह के बिम्बन के अन्तर्गुम्फन बा, सब तरह के रस बा, आदमी आ प्रकृति के अंतर्संबंध के पहिचान बा संवेदना के जुड़ाव बा. अनिरुद्ध के कविता भोजपुरी कविता के कथ्य आ शिल्प के नया मोड़ देले बा.भोजपुरी खातिर ई कम गौरव के बात नइखे कि अनिरुद्ध के कविता के रामवृक्ष बेनीपुरी, राम विलास शर्मा, हंस कुमार तिवारी, जानकी बल्लभ शास्त्री, राहुल संकृत्यायन, श्याम नारायण पाण्डेय आ डॉ० हरिवंश राय बच्चन सभे सरहले बा.
परिचय – निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव
सारण जिला के एक छोटे-से गाँव गलिमापुर में 27 नवंबर, 1943 के जनम. कुछ साल तक शिक्षण कार्य कइला का बाद बिहार सरकार के उत्पाद विभाग में नौकरी आ उपायुक्त का पद से सेवानिवृत्त होके लेखनकार्य. सन् 1976 से भोजपुरी आन्दोलन से सक्रिय जुड़ाव. 1982 आ 1985 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन में संरक्षक मंडल में भागीदारी रहल. मुख्य रूप से हिंदी में लेखन