मरले की बाद काहें लवटि आइल ऊ?।

 कहानी पं. प्रभाकर पांडेय ‘बाबा गोपालपुरिया’  नींद अउर आंखि के रिस्ता अब एकदम्मे खतम हो गइल रहे। बार-बार उ इहे सोंचे लागल की बुजुर्ग इ काहें कहने हं की उ जवने सीट पर रहने हं उ अभिसापित बा, अउर साथे-साथे उ हमरा के अपनी टेसन ले जगले रहे के हिदायत दे गइने हं। खैर, अब […]

सराप 

कहानी डॉ. सुमन सिंह   आजी इनके-उनके टोवे लगलीं। आजी क लकड़ी नियन अंगुरी जेके छुआय जाय उहे कऊँच के कहे ‘ का हाड़ गड़ावत हऊ आजी। इंहवा तोहार बीनवा ना हे। कहीं होई कोने-अतरे लुकाइल-सोकताइल। कहनिया सुनावा न। आगे का भइल। का भइया लोग बचवलन जा अपने बहिन के ? की मर-बिलाय गइलीं? ‘ […]

तिरबेनिया

सूर्येन्दु मिश्र तिरबेनी नाम रहे उनकर लेकिन गांव के लोग उनके तिबेनिया के नाम से ही जाने। तिरबेनी लरिकाईये से गाँव के बाकी लड़िकन से अलगे बुझात रहलें। कवनो काम होखे चाहे खेलकूद उनकर मुकाबिला उनकरी उमिर के लड़िका लो ना क पावे। उनकर बाबू जी छबीला पांडे सरकारी महकमा में एगो अच्छा पद पर […]

कहल-सुनल माफ़ करिहा

  डॉ. सुमन सिंह बंगड़ परेसान हो-हो खटपटिया गुरु के मकान क चक्कर काटत रहलन। कब्बो गेट के लग्गे जाके भित्तर झाँके क कोसिस करें कब्बो खिड़की के बंद पल्ला पर कान रोपें बाकिर कवनों आवाज़-आहट ना। दू तल्ला क बड़-बरियार मकान अइसन सून-सपाट रहे कि लगे बरिसन क उजाड़ ओम्मे वास ले लिहले ह। […]