असल आजादी इहे बा

September 27, 2021
संपादकीय
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मनोज भावुक     

एगो गुलाम आदमी बाहरे से ना, भीतरो से गुलाम होला काहे कि ओकरा मन के भा मन से कुछुओ त होला ना। बलुक साँच कहीं त ओकर मन ओकर रहबे ना करेला। ओकरा त दोसरा के हिसाब से चले के पड़ेला।

… ठीक ओइसहीं नफरत आ कुंठा भरल मन के हालत होला। नफरत अपना हिसाब से आदमी के चलावेला। प्रेम में मन क्रिएटिव होला…कंस्ट्रक्टिव होला। नफरत में डिस्ट्रक्टिव।

आजादी के मूल में प्रेम बा। देश से प्रेमे रहे कि देश आजाद भइल। फेर से प्रेम पैदा कइल जाय। प्रेम रही त देश सुरक्षित रही। देश प्रगति करी। ना त जाति-पाति, धर्म-सम्प्रदाय, पार्टी-पउआ के दीवार पर नफरत के आग में देश धधकते बा।

प्रेम मानवीय गुण ह। नफरत दानवीय। प्रेम से भरल आदमी दोसरा के ह्रदय परिवर्तन क सकेला। नफरत से भरल आदमी नफरते पैदा करी। जहाँ नफरत रही, उहाँ आजादी रहिये नइखे सकत।

असली आजादी ह अपना के नफरत से मुक्त कइल। असली आजादी ह अपना के निगेटिविटी से मुक्त कइल। काहे कि जवना मन में ई सब रही उ मन उन्मुक्त कइसे रही? आज़ाद कइसे रही? उ त रात-दिन इर्ष्या, द्वेष, साजिश, सियासत आ नकारात्मकता के गुलामी के जंजीर में जकड़ल रही। उ जहाँ रही दुर्गंध फइलाई, जहर बोयी त जाहिर बा कि उहाँ खाली तनाव आ अशांतिये रही।

असली आजादी ह अमन हासिल कइल। अमन मन में। अमन समाज में। अमन देश में। जवना घर में दिन रात लड़ाई-झगड़ा होला, कुकुराहट होला, उ घर बर्बाद हो जाला। उहाँ कवनो क्रिएटिव काम होइए ना पावे। सभकर दिमाग दोल्हा-पाती में लागल रहेला।

वैचारिक मतभेद संभव बा बाकिर मतभेद के मतलब इर्ष्या, द्वेष, साजिश, लड़ाई ना ह। मतभेद के उदेश्य अल्टरनेटिव के सुझाव ह। विपक्ष के भूमिका सरकार के विरोधे कइल ना ह, बलुक देश के बेहतरी खातिर सरकार के सही निर्णय में साथो दीहल ह।

दरअसल, जेकरा अंदर दया, करुणा आ प्रेम के भाव ना होई, ओकरा ई कुल्ही बुझइबे ना करी। माता-पिता भी कई गो बिंदु पर, कई गो बात पर अपना संतान के विरोध करेलें बाकिर उ विरोध बेहतरी खातिर होला। बात बस अतने बा। एही भाव के समझे के बा। जेल भी सुधार खातिर बनल। कोर्ट भी दूनू पक्ष के बात निष्पक्ष होके सुने आ न्याय करे खातिर बनल बाकिर जहाँ-जहाँ करप्शन घूस गइल, उहाँ से नैतिकता गायब हो गइल आ साथ हीं असल आजादी ख़तम हो गइल।

अब देश जाति-पाति, गोल-गुट आ कई गो खेमा में बंट के विरोध करे खातिर विरोध करता। एह में सच्चा आदमी अकेला पड़ जाता। झूठा भा लबरा झूठ के भी अइसे आ एतना गावत बाड़न स कि लोग के झुठवे साँच लागे लागत बा। इहे खतरनाक बा।

दरअसल, आदमी के अंदर आदमीयत ना रही, दया, करुणा आ प्रेम के भाव ना रही त एही तरह के विरोध होई। विरोध करे खातिर विरोध। अइसना में चलनियो हँसेला सूप के जेकरा में सहत्तर गो छेद।

स्वार्थ, नफरत आ अहंकार के चलते देश आ समाज में उथल-पुथल बा। आजाद देश में आम आदमी घुटन महसूस करता। प्रेम, सौहार्द आ मानवता के संचार क के देश के हर नागरिक के आजादी के एहसास करावल जा सकता। प्रेम अंगुलीमाल के बदल देलस। डाकू रत्नाकर के महर्षि बाल्मीकि बना देलस। प्रेम में ह्रदय परिवर्तन के ताकत होला। जेकरा के आपन समझल जाई, ओकरा से प्रेम होखबे करी। कम से कम अपना-अपना ईगो के खोल से बहरी निकल के देश के हर नागरिक के आपन समझल जाय। असल आजादी इहे बा।

प्रणाम।

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