मनुष्य के सबसे बड़ उपलब्धि बा कि ओकरा पास एगो विकसित दिमाग बा लेकिन साथ हीं सबसे बड़ परेशानियो के कारण इहे बा। दिमगवे नू तनाव के घर ह।
हाल हीं में भइल सर्वे के अनुसार दुनिया में 86 प्रतिशत लोग तनाव के शिकार बा। अपना देश भारत में त 89 प्रतिशत लोग ‘टेंशन’ में जीयsता। दुनिया में एतना नफरत फइलल कि तरह-तरह के बम आ मिसाइल बनल। प्यार आ मुहब्बत खातिर कुछ बनल कहाँ? प्यार के संदेश देवे वाला भा कोशिश करे वाला के त अक्सर जहर पियावल गइल।
कहे के मतलब कि दुनिया में ज्यादा डिस्ट्रक्टिवे लोग बा। दोसरा के परेशान, दुखी भा तनाव में देख के खुश होखे वाला लोग। एही से सिनेमो में अइसन दृश्य खूब देखावल जाला।
देश के भीतर जाति-धर्म-संप्रदाय-भाषा आदि के आधार पर जवन ग्रुप, गैंग आ खेमा बनल ओह में वैचारिक मतभेद मनभेद तक पहुंचल आ लोग एक-दुसरा के नीचा देखावे खातिर नीचता के स्तर पर उतरे लागल। राष्ट्र, मानवता आ समाज के हित के फिकिर छोड़ के सामने वाला के मान-मर्दन खातिर हुलेलेले में लाग गइल। एक-दुसरा के हौसला देवे के बजाय तनाव देवे में लाग गइल आ पूरा देश भा पूरा विश्व तनावग्रस्त हो गइल।
सवाल ई बा कि कवनों भी देश भा समाज जब एही सब में लागल रही त उ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आ सृजन पर कइसे फोकस करी?
विकास खातिर भा क्रियेशन खातिर एगो सकारात्मक माहौल जरूरी होला, तनावमुक्त मन जरूरी होला। इहाँ त तनाव हर आँगन भा शहरी फ्लैट के हर कमरा तक पहुँच गइल बा। ना यकीन होखे त कचहरी जाके डिवोर्स के केस देखीं। खेत के डंरार खातिर कपारफोरउअल आ मुकदमाबाजी देखीं। त ना पति-पत्नी में पटsता, ना सहोदर भाई में। समाज में त कुछ कुक्कुरन के गोल बनले बा जवन खाली निगेटिविटी फइलावे खातिर जनमल बाड़न स। आखिर हर 40 सेकेंड पर एगो आदमी आत्महत्या काहे करsता। ई हम नइखीं कहत, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के रिपोर्ट कहs ता। .. आ एह में ज्यादा नौजवाने लोग शामिल बा।
केहू के बेवक्त मूअल बहुत खतरनाक होला। ऊ अपना साथे परिवार में केतना लोग के मार देला, जिंदा लाश बना देला। एह से जहां तक संभव होखे, जइसे संभव होखे, अइसन मौत के रोके के कोशिश होखे के चाहीं। मित्र, परिवार अउर इंसानियत से भरल अन्य लोग भी अवसाद, विषाद, तनाव, निराशा आ पीड़ा में आकंठ डूबल लोग के साथे खड़ा होखे। ओकरा के अकेला मत छोड़े। ओकरा के समझा के, बुझा के, गला लगा के, बीच-बचाव क के, पंचायती क के, ओकरा साथे खड़ा होके, आर्थिक, मानसिक भा शारीरिक सहयोग क के ओकरा के बचावे, जिंदगी देवे। इहे मानवता ह।
राक्षसन के काम त दोसरा के तकलीफ में अट्टहास कइल ह। पीड़ित आदमी के भी एह सच्चाई के स्वीकार कर लेवे के चाहीं। एहू बात के पक्का यकीन होखे के चाहीं कि जे दोसरा खातिर गड्ढा खोदेला, ईश्वर ओकरा खातिर गड्ढा खोद देलें। ईश्वर के सत्ता पर भरोसा करे के चाहीं। एह से तनाव कम होई। हर युग में एह दुनिया में अच्छा आ बुरा आदमी रहल बा। एह से समस्या त रही। हमेशा रही, अलग-अलग रूप में। ओकर असर रउरा तन आ मन पर कम से कम पड़े, ओकरा खातिर अपना के अंदर से मजबूत करे के पड़ी। साधना करे के पड़ी। फॉर्गेट एंड फॉर्गिव के फार्मूला अपनावहीं के पड़ी। अपना दिमाग के प्यार के कटोरा बनावे के पड़ी। ओह में नफरत टिकी ना। नफरत ना रही त अवसाद, विषाद आ टेंशन ना रही। एकरा खातिर मेडिटेशन, मेडिकेशन, योगा, काउंसिलिंग, पूजा-प्रार्थना जवन जरूरी होखे कइल जाय।
जिंदगी तोहफा ह। वरदान ह। एकरा के असमय मौत से बचावल जाय। मौत से बेहतर बा चीखल-चिल्लाइल, गरियावल चाहे जी भर के रोअल। दुख भा तनाव के आउटलेट चाहीं। आँख में लोर के सूखल एगो सैलाब के दावत दिहल ह। हमरा कविता ‘’ यादें और चुप्पियां’’ के एगो अंश बा –
यादें और चुप्पियाँ एक दुसरे के directly proportional होतीं हैं
चुप्पियाँ ..यादों के समन्दर में डुबोती चली जाती हैं
कहते हैं .. खामोशी और बोलती है …..echo भी करती है .
पगला देती है आदमी को …..
इसलिए शब्दों का और आंसुओं का बाहर निकलना बहुत जरुरी है.
दिमाग से कचड़ा बाहर निकाले के यत्न होखे। विध्वंस कवनो रास्ता ना ह। सम्राट अशोक विध्वंस भी कइलें आ प्रेम भी। .. बाद में प्रेमे के रास्ता अपनवलें। बेटो-बेटी के प्रेमे के राह धरवले। प्रेमे ईलाज बा नफरत के। प्रेमे ईलाज बा तनाव के। दिमाग के प्रेम के कटोरा बना लीं। सब ठीक हो जाई। …बाकी खातिर दुर्गा मईया बाड़ी नू। जय माता दी!
नवरात्रि के हार्दिक शुभकामना!
प्रणाम !
मनोज भावुक