मुखियई के मचि गइल हल्ला

  सत्य प्रकाश शुक्ल बाबा मुखियई के मचि गइल हल्ला, लागल शिकारी चाल में । लेके दउरल चीखना चखना, माछ फँसावे जाल में ।।   पांच बरिस जे बाति ना पूछल, नियराइल तs आइल बा । उ जालि लोग बूझि गइल तs, नाया जालि बुनाइल बा ।।   कउआ भी अब बोले लागल, मिठकी कोयल […]

राहे-राहे रार करे सगरी हो रामा

श्री मूंगालाल शास्त्री राहे-राहे रार करे सगरी हो रामा, चूला चइतवा ठावें-ठावें ठान देला रगरी हो रामा, खुलमखुला चइतवा   बरगद ना बरजेला पछुआ अ बाटी, दिने दुपहरे के फाड़े रहरी के टाटी, रहरी के टाटी रामा रहरी के टाटी, ओरहन पर लूती लहसावे हो रामा, आगबबूला चइतवा   साचे-साचे झूठ फ़रियावे हो रामा, लुचा […]

महुवा बीनत हम थाकीं हो रामा

आकृति विज्ञा ‘अर्पण‘ महुवा बीनत हम थाकीं हो रामा, ननद असकितही….   कहनी ननद तनि महुआ बिनाई द ऊ त जाके ह्वाट्सएप चलावें हो रामा, ननदि असकितही….     कहनी ननद तनि खैका बनाइ द ऊ त हाय जांगरो चोरावें हो रामा, ननदि असकितही….   कहनी ननदि मोर हथवा पिराला हमरे से नजर देखावें हो […]

चह-चह चहके अंगनवा हो रामा

आचार्य मुकेश चह-चह चहके अंगनवा हो रामा, चइत महीनवा चइत महीनवा हो चइत महीनवा पल-पल पुलके परनवा हो रामा, चइत महीनवा   चंदन वन मँहके अति भोरे खग मानुष मन उठत हिलोरे पूरन सकल सपनवा हो रामा, चइत महीनवा   साधु सजन जन जुटत दुवारे दशरथ सुत सुन रटत पुकारे मंगल गावें भवनवा हो रामा, […]

रसे रसे डोलेला पवनवा हो रामा

श्रीमती माधुरी मधु रसे रसे डोलेला पवनवा हो रामा, चइत महिनवा   एक त पिया मोरे , गइले बिदेसवा, भेजले ना अबहीले पतिया, सनेसवा भावे नाहीं घरवा अंगनवा हो रामा, चइत महिनवा   रीतिया पिरितिया के गितिया बनाके, कगवा अभगवा के लगवा पठाके रहिया निहारेला नयनवा हो रामा, चइत महिनवा   महुवा के बगिया लगावे […]

पियवा के चाहीं परधानी ए रामा

श्री मिथिलेश गहमरी पियवा के चाहीं परधानी ए रामा, छुटली चुहनिया   पहिले त सुध मुंह, पियवा ना बोले, महिला कोटा होते आगा पाछा डोले, बेरी-बेरी कहें दिलजनिया ए रामा, छुटली चुहनिया   पहिले सब कहत रहे हमरा के फुहरी, आजु सब बनवले बा अँखिया के पुतरी, छनहीं में बदलल ई दुनिया ए रामा, छुटली […]

राउर पाती

धर्मयुग, साप्तिहिक-हिंदुस्तान, कादंबिनी पत्रिका के समतुल्य  है ‘भोजपुरी जंक्शन‘     आपके कुशल एवम सफल संपादन में ‘भोजपुरी जंक्शन’ ई पत्रिका के संपूर्ण पृष्ठों को उलटने पलटने का सुअवसर प्राप्त हुआ। धर्मयुग, साप्तिहिक-हिंदुस्तान, कादंबिनी पत्रिका के समतुल्य आपकी विशिष्ट पत्रिका एक लंबे अंतराल के पश्चात मेरी नज़रों से गुज़र गयी, जिसकी प्रशंसा में दो शब्द लिखना […]