शशि प्रेमदेव
एही धरती का कवनो कोना में एगो देस रहे। ओह् देस में एगो नगर रहे — तमाम छोट-बड़ मकान-दोकान से भरल-पूरल। आ ओही मकानन-दोकानन का बीच से बहत रहे एगो उदास नदी। कुछ आबादी नदी के एह् पार। कुछ ओह पार।
नगर का ओह पार वाला हिस्सा में एगो परम पावन इमारत रहे। ओह इमारत में वइसे तs रोजे कुछ लोगन कs आवा-जाही रहे बाकिर हर हफ्ता जुमा (शुक्रवार) का दीने उहंवां एकही किसिम के भेसभूसा वालन क भीड़-भाड़ खास तौर पर दिखाई देव।
एह इमारत कs- जहवां जुटे वालन में एकहू औरत जात कब्बो ना लउके- सबसे बड़का अदिमी के उनकर समर्थक लोग ‘मौलाना’ कहि के पुकारत रहे।
संजोग से नदी के एह पार भी एगो परम पावन इमारत मौजूद रहे — तनी भिन्न किसिम कs ! बाकिर उहंवां जुमा के ना, अकसरहा मंगर आ सनीचर का दिने लोग जुटत रहलन- एके लेखा भेसभूसा में ना, मनचाहा भेसभूसा में! आ खलिसा नरे ना, नारी लोग भी !
एह इमारत क सबसे पूजनीय अदिमी के केहू ‘स्वामी जी’ तs केहू ‘महातमा जी’ कहि के पुकारत रहे।
ओही नगर में एगो ढींठ परिंदो क वजूद रहे। ओह परिंदा के जेतना मनोरंजक एह इमारत का भीतर होखे वाला प्रवचन लागत रहे, ओतने मजेदार ओह इमारत का भीतर होखे वाला प्रवचन ! जब-जब ओकरा के मन बहलावे कs कवनो दोसर जोगाड़ ना भेंटाव, ऊ कब्बो एह पार वाली इमारत पर जाके बइठि जाव, कब्बो ओह पार वाली इमारत पर …
एक दिन क बाति हs । परिंदा जसहीं ओह पार वाली इमारत के छरदेवाली पर जाके बइठल, मौलाना साहेब क गूंजत आवाज ओकरा कान में परल — ” हजरात ! हमारा मज़हब सबसे महान है … इंशाअल्लाह एक दिन सारी कायनात में सिर्फ़ हमीं होंगे … ग़ैर मज़हब वाले इन दिनों ख़ुद ब ख़ुद हमारे मज़हब की तरफ़ खींचे चले आ रहे हैं … कुछ दिनों पहले हमें पंजाब में एक बंदा मिला जिसने हाल ही में इस्लाम अपनाया था … जब मैंने उससे इसकी वज़ह जानना चाहा, तो उसने बताया कि उसकी जवान बहन मर गई थी … जब चिता पर उसे जलाया जा रहा था, तो यह देखकर उसे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई कि कफ़न के जलते ही उसकी बहन का जवान जिस्म नंगा हो गया और आस-पास खड़े लोग उसे फटी आंखों से निहार रहे थे… इसलिए उसने वहीं तय कर लिया कि ऐसे बकवास धर्म से आइंदा कोई वास्ता नहीं रक्खेगा जिसमें पर्दानशीं बहन-बेटियों की लाशें इस शर्मनाक तरीके से जलायी जाती हों.”
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