भले भारत कृषि प्रधान देश ह...

January 19, 2021
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक

भारत कृषि प्रधान देश ह बाकिर टू वन जा टू आ टू टू जा फ़ोर वाला जेनरेशन के ई पते नइखे कि गेहूँ आ धान के बाल में का अंतर बा। मुरई आ गाजर जमीन के ऊपर लटकेला कि नीचे।

भारत के आत्मा गाँव में बसेला आ भारत के भविष्य ‘यूथ’ शहर में।

कवनो बाप के मंजूरे नइखे कि ओकर बेटा गाँव में रहो आ खेती-किसानी सीखो। पढ़-लिख गइल बा त गाँव में रहल अउरो गुनाह बा।

त गाँव में के रही? जे बेकार बा, अनपढ़ बा, लाचार बा आ बेरोजगार बा।

त खेती के करी? जे बेकार बा, अनपढ़ बा, लाचार बा आ बेरोजगार बा।

जे समझदार बा, एजुकेटेड बा, टैलेंटेड बा उ नोकरी करी, बिजनेस करी बाकिर खेती ना करी। हमनी के देश के पहचान गाँव बा बाकिर गाँव में जीये-मरे वाला युवा के जल्दी हाड़े हरदी ना लागी. उ तिलकहरू लोग खातिर तरस के रह जाई।

सबका पता बा कि आदमी नोट ना खाई। खाई रोटिये। बाकी रोटी पैदा करे वाला सबसे बुरबक, सबसे गँवार, अंडरस्टीमेटेड …निकम्मा।

अद्भुत देश बा ई।

देश के राजधानी दिल्ली में किसान बिल के लेके लगभग डेढ़ महिना से आन्दोलन चलsता। टीवी प डिबेट चलsता। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचल बा। चारो तरफ खेती-खेती, किसानी-किसानी, किसान बिल के शोर सुनाई देता त हमार ध्यान शहर में भारी बस्ता के बोझ ढोवत लइकन प गइल ह। आपनो बचपन ईयाद आइल ह। जदि गाँव में ना रहल रहितीं त पते ना चलित कि घेंवड़ा छान्ही प फरेला आ कटहर गाछ पर।

मतलब एजुकेशन में खेती के लेके कवनो सीरियसनेस नइखे भले भारत कृषि प्रधान देश ह।

एजुकेशन, हेल्थ, राजनीति, सिनेमा, क्राइम सबके कवर करे वाला पत्रकार, अखबार आ टीवी पर कार्यक्रम देखले-सुनले बानी बाकिर ओह सीरियसनेस के साथ खेती के लेके कुछ नइखीं देखले भले भारत कृषि प्रधान देश ह।

शहर त शहर हम गाँव में भी युवा लोग के पोलिटिक्स, क्रिकेट, सिनेमा प गॉसिप भा बतकही भा डिबेट करत देखले-सुनले बानी बाकिर खेती प ना भले भारत कृषि प्रधान देश ह।

देश के आत्मा गांव में बसेला आ किसान के आत्मा दहार, सुखार, पाला भा कर्ज के सामना करत-करत फांसी के फंदा प भले भारत कृषि प्रधान देश ह।

साँचो, ई देश कृषि प्रधान ह। लोकतंत्र के मंदिर से हर साल बजट में कृषि खातिर करोड़ो-अरबो रुपया आवंटित कइल जाला बाकिर आजो गांव में लइका जवान भइल ना कि दिल्ली, सूरत, पंजाब, मुंबई जाये के तइयारी क लेला। काहे भाई ?

आज ले कृषि, एह कृषि प्रधान देश में प्रतिष्ठा के विषय काहे ना बन पावल ? कमाई के विषय काहे ना बन पावल ?

उत्तम खेती मध्यम बान। निषिद चाकरी, भीख निदान।। …. वाली कहावत कब आ काहे पलट गइल ?

काहे, हर दुआर से बैल गायब बाड़न स आ आदमी शहर में जाके कोल्हू के बैल बनल बा। कोरोना काल में ई लोग-बाग के सबसे बेसी एहसास भइल ह।

साथहीं शहर में जहर खात-खात ई एहसास भइल ह कि हमनी कि आपन खेतियो खराब कर लेले बानी जा। यूरिया आ पोटास छीट-छीट जहर उगावत बानी जा आ जहरे खात बानी जा।

बैल गायब त दुआर प गोबर वाला खाद गायब। भारतीय खेती गायब। जैविक खेती गायब,जवना में गोबर गौमूत्र के मिटटी में डलला से करोड़ो सूक्ष्म जीव के पेट भरे, मिट्टी के उर्वरा क्षमता बढ़े आ अमृत पैदा होखे। अब जाके धीरे-धीरे फेर लोग के आँख खुलता, जब छिहत्तर गो बेमारी धरे लागल बा।

उपज के मामला में ब्राजील दुनिया में सबसे अधिका अन्न उपजावे वाला देश बा त इजराइल अपना तकनीक के बल प कम जमीन में अधिका उपज वाला देश। हिंदुस्तान के भी प्रेरणा लेवे के होई। अधिक से अधिक टैलेंट के कृषि में झोंके के होई। एह कृषि प्रधान देश में तकनीक आ वैज्ञानिकता के सबसे बेसी अभाव कृषि के क्षेत्र में हीं बा।

कृषि आ पशुपालन एक दूसरा से जुड़ल बा। पहिले जब गाय बाछा बियात रहे त परिवार के बुझाव कि घर में एगो सवांग बढ़ गइल बा, बाकिर समय बदलल आ एह सवांग के उपयोगिता खतम होत गइल। ट्रैक्टर के चलन बढ़ल आ बैल के काम खतम हो गइल। नतीजा भइल कि खेत में खादर के बजाय, यूरिया-पोटाश झोंकाइल आ जिनिगी में जहर।

जिनगी में खुशहाली ले आवे के बा त खेती-किसानी के बारे में गंभीरता से सोचे के होई। जब ले किसानी सम्मान आ स्वाभिमान, आकर्षण आ जूनून के विषय ना बनी, ना खेत लहलहाई, ना जिनगी।

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