गिरमिटिया : सियाह रात के सोनहुला भोर

November 11, 2020
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक

पहिलहूँ लिखले बानी। फेर कहsतानी। बिहार में का बा, यूपी में का बा, बम्बई में का बा, इण्डिया में का बा, उनका में का बा, इनका में का बा…. त ए जिनिगिये में का बा ??? .. आ जब कतहूँ कुछ हइलहीं नइखे तब हाय-हाय में का बा ?

हमनिये के पूर्वज जहवाँ कुछुओ ना रहे, उहाँ ई ना गवलें कि का बा ? का बा ? …. अपना श्रम आ जिजीविषा से ओकरा के स्वर्ग बना देलें- धरती के स्वर्ग- मॉरिशस।

सवाल उठावे में कवनो हर्जा नइखे। का बा आ का नइखे, अपना के अपडेट करे आ बेहतर बनावे खातिर ई जानल त जरुरिये बा बाकिर ई सुर खाली शिकाइत भा अवसाद, विषाद, फ्रस्ट्रेशन-डिप्रेशन, एंगर मतलब खीस-पीत के ना होखे के चाहीं। ई सब एसिड ह जवना बर्तन में रहेला ओकरे पेंदी गायब क देला फेर त जवन रहेला उहो ना रह पावेला, उहो रीत जाला, उहो बह जाला।

दुनिया में कुछ नइखे, सब माया ह भा संतोष करीं, ई सब कूल रहे खातिर कहल गइल बा, माथा के ठंढ़ा रखे खातिर ताकि दोसरा के बढंती देख के जरनियहपन ना होखे। दोसरा के मरद के चौड़ा छाती देख के आपन छाती पीटे वाली जनाना जइसन हालत ना होखे।

मर्द के दर्द ना होला के तर्ज पर मूल बात इहे बा लोर में डूब के मरीं मत ओकरा से बिजुरी पैदा करीं आ अँजोर करीं। आँसू बने अंगारे के माने इहे बा। दर्द से रास्ता खोजीं, दवा खोजीं, ईलाज खोजीं। ऊ ईलाज दुनिया के भी बताईं ताकि रउरा साथे सबका मन के कोरोना मरे। दर्द से कराह के मरीं मत। दर्द सृजन खातिर बनल बा। दर्दे से हमनी के जनम भइल बा। हमनी के माई करहले बिया, तड़पल बिया तब ओकरा मातृत्व के सुख मिलल बा आ हमनी के जिंदगी। दर्द से जिंदगी मिलेला। मुर्दा के दर्द होला ?  दर्द जिंदा रहला के एहसास ह।

गिरमिटिया लोग का कम दर्द में रहे। हमनी के काला पानी, काल कोठरी, यातना, जुल्म, गुलामी ई सब खाली सुनले बानी जा, उ लोग भोगले बा। सुनला आ भोगला में फरक होला कि ना ए चनेसर बाबू। ओतने होला जेतना सपना आ साँच में।

एह गिरमिटिया अंक में टुकड़ा-टुकड़ा में ओह लोग के दर्द के दास्तान बा। ई अंक (1-15 नवम्बर 2020) गिरमिटिया अंक एह से बा कि एही महीना में आज से 186 साल पहिले 2 नवम्बर 1834 के आपन पूर्वज लोग ( गिरमिटिया मजदूर) के पहिला खेप पोर्ट लुईस, मॉरिशस के अप्रवासी घाट पर पहुँचल। ओह लोग के ईयाद में, सम्मान में हर साल 2 नवम्बर मॉरिशस में राष्ट्रीय उत्सव के रूप में, आप्रवासी दिवस के रूप में मनावल जाला। जे गइल ओकर वंशज आज सत्ता पर काबिज बा, मॉरिशस, फिज़ी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद-टोबैगो सब जगह। कहे के मतलब जहवाँ कुछुओ ना रहे आपन सरकार, आपन सत्ता बनल। जहाँ आदमी गुलाम बन के गइल सत्त्ताधारी बन गइल, मजदूर बन के गइल मालिक बन गइल, गिरमिटिया बन के गइल गवर्नमेंट बन गइल।

त का बा ? …  कुछ नइखे आ बहुत कुछ बा। आधा गिलास भरल बा आ आधा खाली बा वाला चश्मा ठीक रखे के बा। जिंदगी जंग बा त लड़े के पड़ी, जहर बा त पीये के पड़ी मूये खातिर ना, जिए खातिर, सुते खातिर ना जागे खातिर।

अपना एगो शेर से बात ओरवावत बानी।

हर कदम जीये-मरे के बा इहाँ / साँस जब ले बा लड़े के बा इहाँ

बाकिर सतर्क होके लड़े के बा –

फूल में तक्षक के संशय हर घरी / अब त खुशबू से डरे के बा इहाँ

अँगरेजवा गिरमिटिया लोग खातिर तक्षके नू रहलन स। सोना के लालच देके सोना जइसन जिनिगी बर्बाद कइलन स बाकिर ओह बर्बादी के राख पर दुनिया के बगइचा में मॉरिशस जइसन खूबसूरत फूल खिलल बा जवना के खुशबू से सउँसे दुनिया गमगमा रहल बा.

जमीन त्यागल बड़ बात ना ह, जमीन के साथ जवन रिश्ता बा ओकरा के त्यागल पीड़ादायक होला. ऊँख रोपे गइल लो. ओह लोग के अपना जिनगी के रस आ मिठास ख़तम हो गइल. ऊँख में रस भरे लागल, मिठास बढ़े लागल, मॉरिशस लहलहा गइल.

ई गिरमिटिया अंक सउँपत बानी ई ईयाद दियावे खातिर कि सियाह रात के सोनहुला भोर होला आ गिरमिटिया से बेहतर एकर दोसर उदहारण ना मिली

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