बिहारी के मौत पर चुप्पी

December 10, 2021
सुनीं सभे
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आर.के. सिन्हा

कश्मीर के वादी फिर से मासूमन के खून से लाल हो रहल बा। उहाँ पर धरतीपुत्र कश्मीरी केमिस्ट माखन लाल बिंद्रा से लेके बिहार के भागलपुर से काम के खोज में गइल गरीब वीरेन्द्र पासवान अउर दू अध्यापकन के गोली से भून दिहल गइल। पासवान के अलावा, सभ के मारल गइला पर त पूरा देश में शोक व्यक्त कइल जा रहा बा, पर पासवान के मौत पर उनका घरवालन भा कुछ अपना लोग के अलावा केहू सामने ना आइल। बिहार के भागलपुर के रहे वाला पासवान आतंकियन के गोली के शिकार हो गइलन। वीरेंद्र पासवान के अंतिम संस्कार झेलम किनारे दूधगंगा श्मशान घाट पर कर देहल गइल। श्रीनगर के मेयर जुनैद अजीम मट्टू के ये संवेदनहीन बयान के पढ़ीं जेमे उ कह रहल बाड़ें कि हम भागलपुर में ना, इहवें श्रीनगर में उनका (पासवान) भाई आ अन्य परिजन के पास सांत्वना व्यक्त करे जाएम।

केतना महान काम कर रहल बाड़े मट्टू साहब। ई सब बोलत में उनके जमीर उनका के रोकलस तक ना। उ पासवान के श्रीनगर में रहे वाला संबंधी लोग से मिले के वादा करत रहले, जे शायद ही श्रीनगर में ढूढ़ला से मिलिहेंI पासवान के घरवालन के मुआवजा के तौर पर सवा लाख रुपया के अनुग्रह राशि प्रदान कर देहल गइल बा। भागलपुर के रहे वाला वीरेंद्र पासवान अक्सर गर्मी के दौरान कश्मीर में रोजी रोटी कमाये आवत रहलन। उ श्रीनगर के मदीनसाहब, लालबाजार इलाके में ठेला पर स्वादिष्ट गोल गप्पा बनाके बेंचत रहले। उनका हत्या के जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट आफ जम्मू कश्मीर नामक संगठन लेले बा। लेकिन, कवनों मानवाधिकार संगठन या कांग्रेस, आप, सपा, बसपा जइसन कवनों दल अब तक मांग नइखे कइले कि पासवान के घर के कवनों सदस्य के सरकारी नौकरी देहल जाय। या उनका के भी लखीमपुर खीरी के दंगाइयन के तरह पचासों लाख के सौगात देहल जायI का आतंकियन के हाथे मारल गइल पासवान के परिवार के सिर्फ सवा लाख रुपया के राशि देहल हीं पर्याप्त बा?

कड़वी सच्चाई त ई बा कि देश के कवनों भी भाग में बिहार के नागरिक के मारल गइला या अपमानित कइल गइला पर कवनों खास प्रतिक्रिया ना होला। अफसोस कि ई ना देखल जाला कि बिहारी जहाँ भी जाला उहाँ पर उ पूरा मेहनत से जी-जान लगाके काम करेला। रउआ जम्मू-कश्मीर या अब केन्द्र शासित प्रदेश हो गइल लद्दाख के भी एक चक्कर लगा लीं। रउआ दूर-दराज के इलाकन में अंडमन से लक्षद्वीप, हिमाचल से अरुणाचल तक बिहारी मजदूर निर्माण कार्य में लागल मिलिहें। लेह-करगिल मार्ग पर सड़क अउर दोसरा निर्माणाधीन परियोजनन में बिहारी सख्त विपरीत जलवायु में भी काम करत मिलिहें। कुछ समय पहिले हमरा कुछ मित्रन के लेह जाये के अवसर मिलल रहे। उहाँ पर आम गर्मी के मौसम में भी काफी ठंड रहे। उहाँ तापमान 12 डिग्री के आसपास ही दिन में भी रहत रहे। सुबह-शाम त पूछीं मत ! दिन में भी जैकेट या स्वेटर पहिनल जरूरी बा। एह कठिन हालात में भी रउआ अनेक बिहारी गुरुद्वारा पत्थर साहब के आसपास मिल जइहें। उनका चेहरा पर उत्साह भरल रहेला। उ पराया जगहन के भी अपना ही माने लागेला। गुरुद्वारा पत्थर साहब के बहुत महान मानल जाला, काहे कि इहाँ बाबा नानक आइल रहीं।

रउआ लेह आ एकरा आसपास के होटलन आ बाजारन में भी बहुत से बिहारी मेहनत मशक्कत करत देखाई दे जइहें। ई लोग सुबह से लेके देर शाम तक काम करत रहलें। ये निर्दोष सब पर हमला कइला के का मतलब बा। ये सबके या दोसरा मासूम लोगन के उ मार रहल बाड़ें, जे अपना के कवनों इस्लामिक संगठन के सदस्य बतावेलें। अब जरा देखीं कि कश्मीर में ताजा घटना सब के बाद कवनों भी मुस्लिम नेता या मानवाधिकार संगठन या कश्मीरियत के बात करे वाला राजनेता तेजी से बढ़त हिंसक वारदातन के निंदा ना कइलस। ई सब लोग भी ई अच्छा तरह समझ लेव कि सिर्फ ई कहला से त बात ना बनी कि इस्लाम भी अमन के हीं मजहब ह। ई त इनका सिद्ध करे के होई I इनका अपना मजहब के कठमुल्लन से दू-दू हाथ करे के होई।

बहरहाल, वीरेंद्र पासवान त कश्मीर में भी बिहार से रोजी रोटी कमाये हीं आइल रहलें। ऊ गरीब केहू के का बिगड़ले रहले। जब गोलियन से छलनी वीरेन्द्र पासवान के शव मिलल त उनक मुँह पर मास्क तक लागल रहे। अपना घर से हजारन किलोमीटर दूर कश्मीर रोजी रोटी के तलाश में गइल पासवान के शरीर में कोरोना त जा ना पवलस, पर आतंकियन के बुलेट शरीर के छलनी कर देहलस। पासवान परिवार, लालू यादव के परिवार या केहू के भी एतना फुर्सत नइखे कि उ उनका मौत के निंदा भर हीं कर देव। कवनों दलित नेता, कवनों बुद्धिजीवी या ह्यूमन राईट वाला आगे ना आइल। ई कवनों पहिला बार नइखे भइल जब अपनहीं देश में कवनों गरीब बिहारी के साथ अइसन घटना भइल होखे। कुछ साल पहिले मणिपुर में भी बिहारियन के साथे मारपीट के घटना बढ़ल रहे। ओ लोग के मारल  देश के संघीय ढांचा के ललकरला के समान बा। ई स्थिति हर हालत में रुके के हीं चाहीं। एकरा के ना रोकल गइल त देश बिखराव के तरफ हीं बढ़ीं।

एही तरे से बिहारियन पर देश के अलग-अलग भाग में हमला होत रहल बा। अगर बात असम के करीं त उहाँ पर ये हमलन के पीछे उल्फा आतंकवादियन के भूमिका होला। दरअसल जब भी उल्फा के केंद्र के सामने आपन ताकत देखावे के होला, उ निर्दोष हिंदी भाषी (बिहार या यूपी वालन) के हीं निशाना बनावे लागेला। पूर्वोत्तर के दू राज्यन क्रमश: असम आ मणिपुर में हिन्दी भाषियन के कई वर्ष से मारल जात रहल बा। ई हिन्दी भाषी पूर्वोत्तर में सदियन से बसल बाड़ें। असम आ मणिपुर में हिन्दी भाषियन के आबादी लाखन में बा। ई लोग असमिया तथा मणिपुरी हीं बोलेला। ई लोग पूरे तरह से ओइजा के ही हो गइल बा। बस एक तरह से इनके अपने पुऱखन के राज्यन से भावनात्मक संबंध भर हीं बँचल बा।

दिल्ली में अपना मुख्यमंत्रित्वकाल के दौरान स्वर्गीय शीला दीक्षित भी एक बार राजधानी के समस्यन खातिर उत्तर प्रदेश आ बिहार से आके बसेवाले लोगन के ज़िम्मेदार ठहरा देले रहली। ई बात 2007 के ह जब शीला दीक्षित कहले रहली कि दिल्ली एगो संपन्न राज्य बा आ इहाँ जीवनयापन खातिर बिहार आ उत्तर प्रदेश से बड़ संख्या में लोग आवेला आ इहवें बस जाला। ये कारण से इहाँ के मूलभूत सुविधा के उपलब्ध करावल कठिन हो रहल बा। सवाल ई बा कि का बिहारी देश के कवनों भी भाग में रहे-कमाये खातिर स्वतंत्र नइखे? अब अइसनके बात केजरीवाल भी करें लागल बाड़ेI

बिहार के रउआ देश के ज्ञान के केन्द्र चाहे राजधानी मान सकेनीं। महावीर, बुद्ध अउर चार प्रथम शंकराचार्य लोग में एक (मंडन मिश्र) अउर भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तक के बिहार देहले बा। ज्ञान प्राप्त करे के जिजीविषा हरेक बिहारी में सदैव बनल रहेला। बिहारी खातिर भारत एक पत्रिव शब्द ह। उ सारा भारत के हीं मानेला। उ मधु लिमये, आचार्य कृपलानी से लेके जार्ज फर्नाडींज के आपन नेता मानत रहल बा अउर बिहार से लोकसभा में भेजत रहल बा। का बिहारी के भारत के कवनों भी भाग में ये तरह से मारल-पीटल जाई?

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईंI )

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